Gazab News in Hindi : कोर्ट में अक्सर लोग न्याय की उम्मीद लेकर याचिका को दायर करते हैं, और उन्हें उम्मीद होती है, कि उन्हें न्याय मिलेगा। लेकिन क्या कभी अपने कोर्ट में ऐसा भी सुना है कि एक मरे हुए व्यक्ति की याचिका दायर की गई। उसके मरने के 1 महीने बाद जिस पर उसके साइन और पावर ऑफ अटॉर्नी वकील को दी गई। जी हां ,आपने बिल्कुल सही सुना है दरअसल या मामला पिछले साल दिसंबर में मर चुके व्यक्ति की याचिका को लेकर है।
दरअसल पिछले साल दिसंबर में मर चुका व्यक्ति 24 जनवरी को अपनी जमानत याचिका पर साइन के साथ और पावर अटॉर्नी वकील को देते हुए कैसे कर सकता है। एनडीपीएस के एक मामले के आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह सवाल उठाया। सुनवाई के दौरान इस मामले में हाईकोर्ट में वकील को कोर्ट में हाजिर रहने के लिए आदेश दिया। कोर्ट ने वकील से अभी पूछा कि वह उत्तर दें कि कैसे एक मर चुका व्यक्ति अपनी याचिका दायर कर सकता है। वह भी करने के 1 महीने बाद और पावर ऑफ अटॉर्नी वकील को देते हुए।
क्या है पूरा मामला
रिपोर्ट के मुताबिक गुरदासपुर के रहने वाले मंजीत सिंह के खिलाफ 10 मार्च को एनडीपीएस की धारा के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई थी। पिछले साल अगस्त में गुरदासपुर जिला अदालत ने उनकी उनकी जमानत को खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट में अपनी याचिका दायर करते हुए जमानत की मांग कर दी थी।
बुधवार को इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट में सरकारी वकील ने आरोपी मनजीत सिंह का डेथ सर्टिफिकेट दिखाते हुए कहा, कि आरोपी तो दिसंबर में ही मर चुका है। इस पर जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने हैरत जताते हुए कहा, कि आई आज का हाई कोर्ट में इसी साल 24 जनवरी को दाखिल की गई थी। यानी आरोपी के मरने के ठीक 1 महीने बाद या कैसे हो सकता है। कि कोई आदमी अगर मर चुका है। तो उसकी याचिका कैसे एक महीने बाद दायर की जा सकती है, उसकी साइन के साथ तथा वकील को पावर ऑफ अटॉर्नी देते हुए। हाई कोर्ट ने इस सुनवाई में कड़ा रुख लेते हुए वकील से जवाब मांगा है, तथा सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहने का आदेश दिया है।