केंद्र सरकार ने 11 मार्च को पूरे देश में नागरिकता (संशोधन)अधिनियम, 2019 (सीएए) लागू कर दिया है. जिस के बाद केरल के एक राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने सीएए पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून धर्म के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है.
याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा
सीएए 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था और अगले दिन कानून को राष्ट्रपति की सहमति मिल गई थी. उसी दिन, IUML ने इसे चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सीएए धर्म के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है. यह तर्क दिया गया है कि ये कानून अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. 18 दिसंबर, 2019 को सर्वोच्च अदालत ने सीएए को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. उस समय भी IUML ने कानून पर रोक लगाने के लिए दबाव डाला था. हालांकि केंद्र सरकार ने तब कोर्ट से कहा था कि क्योंकि कानून अभी नहीं बने हैं, इसलिए सीएए लागू नहीं किया जाएगा. हालांकि सोमवार को नियमों को लागू किए जाने के बाद IUML ने अब कानून पर रोक लगाने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया है.
सीएए पर रोक लगा दी जाए
याचिकाकर्ताओं ने आवेदन में यह भी गुजारिश की गई है कि सीएए पर रोक लगा दी जाए. याचिका के अनुसार सोमवार को अधिसूचित नियम अधिनियम की धारा 2(1)(बी) के तहत कवर किए गए व्यक्तियों को नागरिकता दी जाएगी. जिस में मुस्लिम धर्म शामिल नहीं है. याचिका में कहा गया है कि यह स्पष्ट रूप से मनमाना है और केवल लोगों की धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों को नागरिकता दी जाएगी. जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के खिलाफ है.