Haldwani Violence : हल्द्वानी में दंगों की पुनरावृत्ति, 4 साल बाद भी न्याय की प्रतीक्षा में दिल्ली

वर्ष 2020 में फरवरी की 24 और 25 तारीख पर, जब संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर थे. दुनिया की मीडिया का ध्यान दिल्ली पर था. तब ताहिर हुसैन, उमर खालिद, सरजिल इमाम, खालिद सैफ़ी और अन्य इस्लामिस्ट एंव शहरी नक्सलियों ने एक षड्यंत्र रचा. यह षड्यंत्र भारत की राजधानी दिल्ली को जलाने का था, जिसमें मुसलमानों ने हिन्दुओं को टारगेट करते हुए जो कृत्य किये वो अत्यंत वीभत्स और अमानवीय थे.
मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रायोजित दंगे ने एक तरह की आतंकी हिंसा का उदाहरण प्रस्तुत किया था. ये हिंसा एक साधारण अपराध या हिंसात्मक कृत्य से बिलकुल अलग था, इसका उद्देश्य डर और आतंक का ऐसा वातावरण बनाना था, जिससे हिन्दू समाज में भय व्याप्त हो जाए और भारत सरकार की कानून व्यवस्था से उसका विश्वास हमेशा के लिए समाप्त हो जाए. हालांकि दिल्ली पुलिस और मोदी सरकार की सूझ-बूझ से दंगों को नियंत्रित किया गया लेकिन इसके गहरे घाव आज भी उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में महसूस किये जा सकते हैं.
योजनाबद्ध तरीके से कराए गए थे हमले
घटना के चार वर्ष बाद भी जब हम मुस्लिमों से मिलते हैं तो उनमें कोई ग्लानि की भावना नहीं होती. अलबत्ते वो एक दंभ दिखाते हुए इस क्षेत्र के इस्लामीकरण में लगे हुए हैं. संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक को 11 दिसंबर 2019 को पारित किया. इसका उद्देश्य पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़ित समुदायों (हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना था. नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 के पारित होने के बाद देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए. इन प्रदर्शनों के दौरान 23-25 फरवरी 2020 को उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए, इसमें 53 लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए. दंगों के मामले में दिल्ली पुलिस ने 758 एफआईआर दर्ज किए हैं
आज मैं चार वर्ष बाद इन घटनाओं का विवेचन करती हूं तो पता चलता है कि दंगे का उद्देश्य था हिंदुओं को भगाना और क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलना. दिल्ली पुलिस के चार्जशीटों से भी यह स्पष्ट हुआ कि यह दंगे योजनाबद्ध तरीके से करवाये गए थे.आतंक पर हुए विभिन्न शोध से यह स्पष्ट होता है कि एक व्यक्तिगत हिंसा तो केवल शारीरिक और मानसिक नुकसान देती है. दिल्ली दंगे में मुस्लिम समाज की भूमिका ऐसे रही कि उससे गंगा-जमुनी परपंरा जड़ें उखड़ गयीं. ये ऐसे घाव हैं जो समाज और राष्ट्र पर लंबे समय तक रहते हैं. इसलिए इस दंगे को एक आतंकवादी प्रयास के रूप में देखना चाहिये और इसके दोषियों इस्लामिस्ट और शहरी नक्सलियों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिये.
उमर खालिद ने बुना था षड्यंत्र
दिल्ली दंगे में पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश की गई चार्जशीट के अनुसार, उमर खालिद ने दिल्ली दंगों को भड़काने का षड्यंत्र बुना था, डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान भारत की वैश्विक छवि को धूमिल करना था. उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विगत एक दशक के कार्यकाल के दौरान कश्मीर को छोड़कर देश कि किसी भी हिस्से में कोई भी आतंकवादी हमला नहीं हुआ. इससे भारत की आंतरिक सुरक्षा की सुदृढ़ छवि बनी, जिसे तारतार करने के लिए इन कठमुल्लाओं ने साजिश रची थी.
चार्जशीट के अनुसार “जितना कि षड्यंत्रकारों ने षड्यंत्र बुना, उसका लक्ष्य केवल जघन्य और आंतरिक सांप्रदायिक हिंसा के सहारे भारत सरकार को उखाड़ फेंकना था. “अगर षड्यंत्रकारी पूरी तरह से सफल हो जाते, तो सरकार का आधार हिल जाता, जिससे भारतीय लोग अनिश्चितता, कानून की अव्यवस्था और अराजकता में फंस जाते. इससे उनकी जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के विश्वास का नुकसान होता.
स्वाभाविक प्रदर्शन नहीं साजिश था शाहीन बाग का विरोध प्रदर्शन
दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट को बताया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन नेता स्वाभाविक या स्वतंत्र आंदोलन नहीं था. पुलिस ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) शाहीन बाग घटना और दिल्ली दंगो की साजिश में शामिल थे.
आज चार वर्ष हो गये हैं, तमाम कानूनी प्रक्रियाएं चल रही हैं फिर भी हाल ही में हल्द्वानी, उत्तराखंड में फिर ऐसी ही क्रूर वारदात समाने आयी. हल्द्वानी में मुस्लिम समुदाय ने फिर वही किया जो 2020 में दिल्ली में हुआ था. 8 फरवरी को अवैध मजार और मदरसे को ध्वस्त करने के दौरान हल्द्वानी में दंगा भड़का. इस हिंसा में पांच हजार से अधिक मुस्लिम लोगों ने मिलकर पुलिस-प्रशासन की टीम पर पथराव और फायरिंग करने के साथ ही पेट्रोल बम से हमला किया. इससे छह लोगों की मौत हो गई और ढाई सौ से अधिक पुलिसकर्मी घायल हो गए. इसके पश्चात, पुलिस ने इलाके में कर्फ्यू लगा दिया और दंगाईयों को गिरफ्तार करने के लिए कार्रवाई की. पुलिस ने 50 से ज्यादा दंगाईयों को गिरफ्तार किया है, जिसमें पेट्रोल बम बनाने में माहिर और वांटेड अरबाज भी शामिल है.
अरबाज को मिला था पेट्रोल बम बनाने का प्रशिक्षण
जांच में फिर वही तथ्य सामने आये कि अरबाज को दंगे फैलाने के लिए पहले से ही पेट्रोल बम बनाने का प्रशिक्षण मिला हुआ था और वह दूसरे राज्यों से भी प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए बाहर गया था. हल्द्वानी, घटना में दंगाइयों से हथियार भी बरामद किए गए हैं. घटना के बाद पुलिस द्वारा हर दंगाई की शिनाख्त करके जो तथ्य सामने ला रही है वो दिल्ली दंगो की पुनरावृत्ति लग रही है. अब प्रश्न है कि क्या हल्द्वानी के गुनहगारों को सजा जल्द सजा मिलेगी या फिर दिल्ली की भांति इन्हे भी न्याय के लिए इंतजार करना होगा.
हाल के घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि मुस्लिमों के हिंसा और दंगों से बचने के लिए हिन्दू समाज और प्रशासन को साथ मिलकर इन कठिनाईयों का सामना करना होगा. सामुदायिक समझदारी, एकजुटता और संवाद को मजबूत करने की आवश्यकता है. हिंसा को अवरुद्ध करने के लिए शिक्षा और सचेतता का प्रचार किया जाना चाहिए. समुदाय के नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच संवाद को और बढ़ावा देना होगा. दूसरे, पुलिस, सुरक्षा बलों और सामाजिक संगठनों को अधिक तैयार और सशक्त बनाने की आवश्यकता है. सक्रिय सुरक्षा प्रणाली, जानकारी संग्रहण, और प्रतिक्रियाशीलता के साथ न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लानी होगी.
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