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अल्फ्रेड नोबेल की ‘मौत’ से जुड़ी है कहानी, कई मानते हैं सच तो कइयो के लिए ये ‘अनसुलझी गुत्थी’

6 से 13 अक्टूबर के बीच हर साल नोबेल पुरस्कार की घोषणा होती है। जो मेडिसिन, लिटरेचर, शांति, फिजिक्स, केमिस्ट्री और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अद्भुत और मानव समाज के लिए अभूतपूर्व कार्य करने वाले को दिया जाता है। 1901 से ये रिवायत जारी है। इस पुरस्कार के साथ अल्फ्रेड नोबेल का नाम जुड़ा हुआ है, वो शख्स जिन्होंने डायनामाइट का आविष्कार किया! इस पुरस्कार की नींव कैसे पड़ी, क्यों पड़ी और क्या वो एक अनसुलझी गुत्थी है?

कहते हैं, कभी-कभी इंसान की पहचान उसके जीवन के अंत में नहीं, बल्कि उसकी गलती को सुधारने की कोशिश में बस जाती है। ऐसा ही हुआ था अल्फ्रेड नोबेल के साथ, जिन्हें ‘गलती’ से मौत का सौदागर वाला टैग मिला और जिनके लिए कहा जाता है कि उन्होंने ही मानवता के नाम सबसे बड़ा सम्मान, नोबेल पुरस्कार, शुरू किया। आखिर ये गलती थी क्या?

तो हुआ यूं कि, 1888 में एक दिन, फ्रांसीसी अखबार ने गलती से अल्फ्रेड नोबेल की मृत्यु सूचना (ऑबिच्युरी) छाप दी। एक फ्रांसीसी अखबार ने छापा- ‘लुह माह शान दुह लाह मोर अह मोर,’ यानी मौत का सौदागर मर गया। ट्विस्ट ये था कि ये खबर गलत थी क्योंकि मौत उनके भाई लुडविंग नोबेल की हुई थी।

अल्फ्रेड पर लिखी कई बायोग्राफी में दावा किया गया है कि इसे पढ़कर वो असहज हो गए। उन्होंने महसूस किया कि अगर आज वे सच में मर जाते, तो इतिहास उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद करता जिसने इंसानों को मारने का तरीका दिया न कि बचाने का। बस इसी एक पल ने उन्हें बदल कर रख दिया। अपनी मौत से पहले उन्होंने 1895 में जो वसीयत लिखी, उसमें मानवजाति के कल्याण में जुटे शोधकर्ताओं को सम्मानित करने के लिए अपनी पूरी संपत्ति दान कर दी।

नोबेल ने लिखा, “मेरी संपत्ति का ब्याज हर साल उन लोगों को दिया जाए जिन्होंने मानवता के लिए सबसे बड़ा लाभ पहुंचाया हो।” उनका निधन 1896 में हुआ और मौत के 5वें साल नोबेल प्राइज दिया जाने लगा।

ये वो किस्सा है जिसका जिक्र पहली बार 1953 में प्रकाशित हुई ‘अल्फ्रेड नोबेल: द मैन एंड हिज प्राइजेज’ में हुआ। यह सबसे विश्वसनीय स्रोतों में से एक है क्योंकि इसे स्वयं नोबेल फाउंडेशन ने तैयार करवाया था। ऐसी ही बात ‘अल्फ्रेड नोबेल: ए बायोग्राफी’ में है। इसे स्वीडिश लेखक और फिल्मकार केन फैंट ने लिखा। इस जीवनी में अल्फ्रेड नोबेल की निजी भावनाएं, उनके अपराध बोध और ऑब्युचरी वाली दास्तान को बहुत संवेदनशील तरीके से रेखांकित किया गया है। इसी किताब का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ और काफी पढ़ी गई।

एक और किताब है सुसैन गोल्डेनबर्ग की जिसका शीर्षक है ‘द मर्चेंट ऑफ डेथ: द लाइफ एंड लेगसी ऑफ अल्फ्रेड नोबेल,’ जिसमें गलत खबर से अल्फ्रेड की जिंदगी पर पड़े प्रभाव की जानकारी है। चौथी किताब ‘अल्फ्रेड नोबेल: डायनामाइट एंड पीस’ में वैज्ञानिक योगदान के साथ उनकी मानवीय सोच और उस घटना का विश्लेषण भी है जिसने उन्हें आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया।

फिर भी इस गलत खबर को भ्रामक बताने वालों की कमी नहीं है। कई विशेषज्ञों ने इसे मनगढ़ंत बताया है। इसके पीछे तर्क दिया गया कि ऐसे किसी फ्रांसीसी समाचार की कोई पुरानी प्रति नहीं मिली जिसमें इसका जिक्र हो। कैथी जोसेफ नाम की इतिहासकार लिखती हैं- “अल्फ्रेड नोबेल के भाई लुडविग की मृत्यु अप्रैल 1888 में फ्रांस के कान्स में हुई थी, और एक समाचार पत्र ने गलती से यह मान लिया था कि अल्फ्रेड की मृत्यु हो गई है।” अखबार ने अपने विज्ञापन में लिखा- “एक ऐसे व्यक्ति का कल कान्स में निधन हो गया, जिसे मानवता का रक्षक कहना आसान नहीं है। वह डायनामाइट के आविष्कारक नोबेल हैं।”

हालांकि इसी अखबार ने अगले दिन अपनी गलती की क्षमा याचना के साथ लिखा कि वो अलफ्रेड नहीं, उनके भाई हैं। यही वजह है कि प्रमाण न मिलने के कारण इसे मनगढ़ंत कहा जाता है, तो कइयों का तर्क है कि नहीं, इसमें सच्चाई है। शायद यही विरोधाभास शोक संदेश की अनसुलझी गुत्थी के तौर पर याद किया जाता है।

3 Comments

  1. of course like your web-site however you need to test the spelling on quite a few of your posts. Several of them are rife with spelling issues and I in finding it very troublesome to tell the reality however I will certainly come again again.

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