ऐसे बहुत से ग़म होते हैं जो दिखते नहीं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो दुखते नहीं.” अगर कोई इंसान इस लाइन को दोहराते रहे तो समझा जा सकता है कि उसकी जिंदगी में कोई ना कोई ग़म तो चल रहा है. ऊपर से भले ही वो खुश नजर आए, लेकिन अंदर से वो काफी गमगीन है. आज हम इस लाइन का जिक्र इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि 18 फरवरी को एक समय में बॉलीवुड की पॉपुलर एक्ट्रेस रहीं नलिनी जयंती की जन्मजयंती है. जिस लाइन की बात हम कर रहे हैं, कहा जाता है कि वो उस लाइन को बोलती रहती थीं. अब आखिर उनकी जिंदगी में क्या दुख था? हम आगे इस बारे बात करेंगे, उससे पहले एक नजर उनकी फिल्मी करियर पर डालते हैं.
कहा जाता है कि नलिनी को बचपन से ही डांस करने का शौक था. उनके पिता भी उन्हें इसमें सपोर्ट किया करते थे. लेकिन डांस के साथ-साथ नलिनी को फिल्मों में काम करने का भी मन था. लेकिन उनके पिता इस चीज के सख्त खिलाफ थे. एक बार नलिनी अपनी कज़न सिस्टर शोभना समर्थ के घर गई हुई थीं. वहां बर्थडे पार्टी चल रही थी.
शोभना पहले से ही फिल्मों में काम करती थीं. उस पार्टी में डायरेक्टर चेमनलाल देसाई भी आए हुए थे. वो ‘राधिका’ नाम की एक फिल्म बना रहे थे, जिसके लिए वो एक्ट्रेस ढूंढ रहे थे. पार्टी में उनकी नजर नलिनी पर पड़ी और फिर चेमनलाल की एक्ट्रेस की तलाश पूरी हो गई. उन्होंने नलिनी को अपनी फिल्म ऑफर की, लेकिन उनके पिता ने इसके लिए साफ इनकार कर दिया. हालांकि फिर चेमनलाल के बहुत समझाने के बाद वो मान गए. साल 1941 में उनकी ये फिल्म रिलीज होती है और फिल्मों में काम करने का नलिनी का सपना सच हो जाता है. उसके बाद नलिनी ‘अनोखा प्यार’ (1948), ‘फिर भी अपना है’ (1954), ‘नास्तिक’ (1954), ‘मुनीमजी’ (1955) जैसी कई फिल्मों में काम करती हैं.
पहली फिल्म के डायरेक्टर के बेटे से रचाई थी शादी
नलिनी जिस शख्स की मदद से फिल्मी दुनिया में आईं, फिर उसकी ही बहू बन गईं. डायरेक्टर चिमनलाल के बेटे वीरेन्द्र देसाई और नलिनी के बीच दोस्ती हो गई. फिल्म शूटिंग के दौरान शुरू हुई ये दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई. साल 1945 में दोनों ने इस प्यार को शादी का रूप दे दिया. हालांकि, दोनों ने शादी परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ जाकर की थी. दोनों के ही घरवाले इस रिश्ते के लिए राजी नहीं थे. दरअसल, यहां मसअला ये था कि वीरेन्द्र पहले से शादीशुदा थे और एक बच्चे के पिता भी थे.
दोनों ने शादी तो कर ली, लेकिन उसके बाद वीरेन्द्र के पिता ने उन्हें घर से बाहर कर दिया. जिसके बाद वीरेन्द्र ने 2 हजार रुपये महीने की तंख्वाह पर फिल्मिस्तान स्टूडियो में काम करने लगे. एक घर भी किराए पर लिया, जहां दोनों रहने लगे. लेकिन किस्मत को दोनों का ये साथ मंजूर नहीं था. दरअसल, वीरेन्द्र फिल्मिस्तान में काम तो कर रहे थे, लेकिन उन्हें कोई फिल्म नहीं मिल रही थी और नलिनी का भी हाल कुछ ऐसा ही था. वीरेन्द्र को भले ही फिल्में नहीं मिल रही थीं, लेकिन फिल्मिस्तान के मालिक शशदर मुखर्जी उन्हें हर महीने सैलरी दिया करते थे.
नलिनी के बारे में बताया जाता है कि उन्हें इसलिए काम नहीं मिल पा रहा था, क्योंकि उन्हें शशधर मुखर्जी के सामने एक पेशकश रखी थी कि वो उसी पिक्चर में काम करेंगी, जिसमें वीरेन्द्र डायरेक्टर होंगे. इस शर्त की वजह से एक तरफ शशधर मुखर्जी दोनों से नाराज होते चले गए और इसका सीधा असर दोनों की शादीशुदा जिंदगी पर भी पड़ने लगा. रोजाना दोनों के झगड़े होने शुरू हो गए. नतीजतन, झगड़ा तलाक में बदल गया. शादी के महज तीन साल बाद दोनों एक दूसरे से अलग हो गए.
जहां एक तरफ उनकी शादीशुदा जिंदगी पटरी से नीचे उतर गई तो वहीं दूसरी तरफ नलिनी की प्रोफेशनल लाइफ फिर से पटरी पर आ गई. उन्हें काम मिलने लगा. 1948 में आई फिल्म ‘अनोखा प्यार’ में वो दिलीप कुमार संग दिखीं. ‘समाधि’ समेत कई फिल्मों में पर्दे पर अशोक कुमार के साथ भी उनकी जोड़ी बनी. रिपोर्ट्स में ऐसा बताया जाता है कि साथ काम करते-करते अशोक कुमार के साथ भी उनकी नजदीकियां बढ़ीं, लेकिन कुछ सालों बाद इसपर पूर्णविराम लग गया.
प्रभुदयाल के साथ रचाई दूसरी शादी
साल 1955 में ‘मुनीमजी’ नाम की फिल्म आती है. इस पिक्चर में देवानंद लीड रोल में थे. एक्टर प्रभुदयाल भी इस फिल्म में काम कर रहे थे. सुबोध मुखर्जी के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म ने नलिनी और प्रभुदयाल को करीब ला दिया. दोनों के बीच प्यार हुआ, इक़रार हुआ और फिर साल 1961 में आई फिल्म ‘अमर रहे ये प्यार’ के दौरान दोनों ने शादी कर ली. नलिनी इस पिक्चर में बतौर एक्ट्रेस काम कर रही थीं तो प्रभुदयाल इसके डायरेक्टर थे. दोनों की शादीशुदा जिंदगी बिल्कुल सही चल रही थी. हालांकि फिर साल 2001 में प्रभुदयाल की मौत हो जाती है और नलिनि तन्हा रह जाती हैं. पति की मौत से उनपर गहरा झटका लगता है. बताया जाता है कि उसके बाद वो तन्हाई इख्तियार कर लेती हैं. बाहर आना-जाना, लोगों से मिलना जुलना सबकुछ बिल्कुल बंद कर देती हैं और मुंबई के चेंबूर में मौजूद अपने घर में अकेली जिंदगी गुजारने लगती हैं.
तारीख- 22 दिसंबर, साल 2010, जगह- चेंबूर का वही घर, नलिनी भी इस दुनिया को छोड़ जाती हैं. उनकी मौत के बारे में ना उनके पड़ोसियों को पता होता है और ना रिश्तेदारों को, क्योंकि रिश्तेदारों से अब उनका कोई संपर्क नहीं था. तीन दिन तक उनकी लाश घर में यूं ही सड़ती रहती है. फिर एक शख्स आता है और खुद को उनका करीबी बताता है और एंबुलेंस में उनकी लाश लेकर चला जाता है. कहा जाता है कि उनकी मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई थी. पर उनकी लाश को ले जाने वाला शख्स कौन था? उनकी बॉडी को लेकर वो कहां गया? इस तरह के सवाल का अब भी कोई जवाब नहीं है और उनकी मौत अब भी एक राज है.
नलिनी को बॉलीवुड की पहली ‘बिकिनी गर्ल’ भी कहा जाता है. कथित तौर पर वो बॉलीवुड की पहली एक्ट्रेस थीं, जिन्होंने फिल्म में स्विमसूट पहना था. उन्होंने साल 1950 में रिलीज हुई फिल्म ‘संग्राम’ के लिए ये आउटफिट कैरी की थी. कहा जाता है कि वो उस कदर खूबसूरत थीं कि उस जमाने में उनकी तुलना मधुबाला जैसी हसीन एक्ट्रेस से होती थी. उनकी खूबसूरती के साथ-साथ उनकी मुस्कुराहट भी लोगों को खूब भाती थी. दुनिया उनकी स्माइल पर फिदा थी. लेकिन किसे पता था कि जिसकी एक मुस्कान पर दुनिया पागल है, वो अंदर से बिल्कुल तन्हा है. उन्होंने दो शादियां कीं, हालांकि दोनों शादियों से उन्हें एक भी औलाद नहीं हुआ. इस बात का भी नलिनी को काफी दुख था. शायद, इसी गम में पति के जाने के बाद वो तन्हा रहने लगीं और इसी वजह से वो कहती थीं कि, “ऐसे बहुत से ग़म होते हैं जो दिखते नहीं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो दुखते नहीं.”