
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कोई भी उम्मीदवार नामांकन पत्र में अपनी किसी भी आपराधिक सजा का खुलासा न करने पर, भले ही वह सजा मामूली हो और बाद में हाई कोर्ट द्वारा रद्द कर दी गई हो, उसकी उम्मीदवारी रद्द हो जाएगी। यह फैसला बिहार विधानसभा चुनावों के बीच आया है, जो राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।
कोर्ट ने इस मामले में सुनाया ये फैसला
यह फैसला मध्य प्रदेश के भीकनगांव से नगर पार्षद पूनम के मामले में आया है। पूनम पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (1881) की धारा 138 के तहत चेक बाउंस के मामले में ट्रायल कोर्ट ने एक साल की सजा सुनाई थी।
नामांकन पत्र में नहीं किया सजा का जिक्र
हालांकि, बाद में हाई कोर्ट ने इस सजा को पलट दिया, लेकिन पूनम ने नामांकन पत्र में इस सजा का जिक्र नहीं किया। निचली अदालतों ने उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी, जिसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
जानिए क्या बोले जज?
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की बेंच ने गुरुवार को विशेष अनुमति याचिका (SLP) खारिज करते हुए कहा, ‘नामांकन पत्र में दोषसिद्धि का खुलासा न करना मतदाताओं के अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। रद्द की गई सजा का मतलब यह नहीं कि उम्मीदवार को इसे छिपाने का अधिकार है।’
हलफनामे में दोषसिद्धियों का उल्लेख अनिवार्य
इसके साथ ही कोर्ट ने जोर दिया कि चुनावी हलफनामे में सभी पुरानी दोषसिद्धियों का उल्लेख अनिवार्य है, चाहे अपराध छोटा हो या सजा बाद में उलट दी गई हो।




