विदेशी दौरों की जानकारी नहीं देते Rahul Gandhi, CRPF ने Z+ सुरक्षा नियमों के उल्लंघन को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष खरगे को लिखा पत्र

केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की विदेश यात्राओं के दौरान बार-बार सुरक्षा प्रोटोकॉल तोड़े जाने पर गंभीर चिंता जताई है। हम आपको बता दें कि ज़ेड+ श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त राहुल गांधी को एडवांस सिक्योरिटी लायज़न (ASL) टीम के साथ हर यात्रा और कार्यक्रम की पूर्व सूचना देनी होती है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार कई मौकों पर लोकसभा में विपक्ष के नेता ने इस नियम का पालन नहीं किया।
सीआरपीएफ ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को लिखे पत्र में कहा है कि यह लापरवाही राहुल गांधी को गंभीर जोखिम में डाल सकती है। साथ ही एक अलग पत्र राहुल गांधी को भी भेजा गया है, जिसमें उनसे भविष्य में सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करने का आग्रह किया गया है।
हम आपको बता दें कि पत्र में इटली, वियतनाम, दुबई, कतर, लंदन और मलेशिया जैसी यात्राओं का उल्लेख किया गया है। “येलो बुक” प्रोटोकॉल के अनुसार, उच्च सुरक्षा प्राप्त वीवीआईपी को विदेश यात्रा की पूर्व सूचना सुरक्षा तंत्र को देनी अनिवार्य है। ताकि वहां आवश्यक इंतज़ाम हो सकें। लेकिन आरोप है कि राहुल गांधी ने कई बार इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
देखा जाये तो यह मामला केवल व्यक्तिगत सुरक्षा का नहीं, बल्कि राजनीतिक संदर्भ भी रखता है। राहुल गांधी लगातार विदेश यात्राओं पर रहते हैं— कभी व्यक्तिगत, तो कभी राजनीतिक कारणों से। विपक्षी नेता होने के नाते उनके बयानों और विदेश दौरों पर केंद्रित चर्चाएँ अक्सर राष्ट्रीय राजनीति में सुर्खियां बनती हैं। ऐसे में अगर वह सुरक्षा प्रोटोकॉल की अनदेखी करते हैं, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या राजनीति को सुरक्षा से ऊपर रखा जा रहा है?
देखा जाये तो भारत में वीवीआईपी सुरक्षा कोई साधारण प्रोटोकॉल नहीं, बल्कि वर्षों के अनुभव और खतरों के आकलन पर आधारित संरचना है। ज़ेड+ श्रेणी की सुरक्षा का अर्थ केवल व्यक्तिगत सुरक्षा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान का दायित्व भी है। किसी भी तरह की चूक सुरक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता को कमजोर करती है।
वैसे यहां एक द्वंद्व सामने आता है— लोकतांत्रिक राजनीति में नेताओं को जनता से सीधा जुड़ना होता है, लेकिन बढ़ते वैश्विक आतंकवाद और राजनीतिक अस्थिरता के दौर में सुरक्षा की अनदेखी आत्मघाती साबित हो सकती है। राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ नेता की लापरवाही न केवल उनके लिए, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों और राजनीतिक व्यवस्था के लिए भी एक चुनौती है।
बहरहाल, सुरक्षा कोई व्यक्तिगत विकल्प नहीं, बल्कि संस्थागत जिम्मेदारी है। राहुल गांधी को यह समझना होगा कि उनकी अनदेखी से वे केवल खुद को नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था को खतरे में डाल सकते हैं। राजनीति और सुरक्षा—दोनों साथ-साथ चल सकते हैं, बशर्ते नियमों का पालन हो। राहुल गांधी का दायित्व है कि वे सुरक्षा प्रोटोकॉल का सम्मान करें, ताकि लोकतांत्रिक विमर्श और राजनीतिक गतिविधियाँ बिना किसी अनावश्यक जोखिम के आगे बढ़ सकें।
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