
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने भारत में रह रहे रोहिंग्या के कानूनी दर्जे पर मंगलवार को तीखा सवाल किया और पूछा कि क्या ‘‘घुसपैठियों’’ के स्वागत के लिए ‘‘रेड कार्पेट’’ बिछाना चाहिए जबकि देश के अपने नागरिक गरीबी से जूझ रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मानवाधिकार कार्यकर्ता रीता मनचंदा द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए तीखी टिप्पणियां कीं। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि यहां अधिकारियों की हिरासत से कुछ रोहिंग्या लापता हो गए हैं। अब मामले की सुनवाई 16 दिसंबर को होगी।
वकील ने आरोप लगाया कि मई में दिल्ली पुलिस ने कुछ रोहिंग्या को पकड़ा था और वे कहां हैं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, “यदि उनके पास भारत में रहने का कानूनी दर्जा नहीं है तो वे घुसपैठिए हैं। उत्तर भारत में हमारी सीमा बहुत संवेदनशील है। यदि कोई घुसपैठिया आता है, तो क्या हम उनका यह कहकर स्वागत करेंगे कि हम आपको सभी सुविधाएं देना चाहते हैं?”
अदालत ने कहा, “उन्हें वापस भेजने में क्या समस्या है?” पीठ ने कहा, ‘‘भारत ऐसा देश है जहां बहुत से गरीब लोग हैं, और हमें उन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’’ प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, “पहले आप प्रवेश करते हैं, आप अवैध रूप से सीमा पार करते हैं। आपने सुरंग खोदी या बाड़ पार की और अवैध रूप से भारत में दाखिल हुए। फिर आप कहते हैं, अब जब मैं प्रवेश कर गया हूं, तो आपके कानून मुझ पर लागू होने चाहिए और मैं भोजन का हकदार हूं, मैं आश्रय का हकदार हूं, मेरे बच्चे शिक्षा के हकदार हैं। क्या हम कानून को इस तरह से खींचना चाहते हैं।”
याचिकाकर्ता ने 2020 के उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि रोहिंग्या को केवल प्रक्रिया के अनुसार ही निर्वासित किया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने पूछा, ‘‘हमारे देश में भी गरीब लोग हैं। वे नागरिक हैं। क्या वे कुछ लाभों और सुविधाओं के हकदार नहीं हैं? उन पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? यह सच है, अगर कोई अवैध रूप से प्रवेश भी कर गया है, तो हमें उन पर थर्ड-डिग्री का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए…आप उन्हें वापस लाने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का अनुरोध कर रहे हैं।”
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह याचिका किसी प्रभावित व्यक्ति द्वारा दायर नहीं की गई है और याचिकाकर्ता के पास ऐसी याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने 31 जुलाई को देश में रोहिंग्याओं से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि रोहिंग्या से संबंधित मामलों में सबसे पहला बड़ा मुद्दा यह है कि वे शरणार्थी हैं या अवैध रूप से प्रवेश करने वाले।
पीठ ने कहा कि एक बार यह तय हो जाने के बाद, अन्य मुद्दे महत्वपूर्ण हो सकते हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “पहला बड़ा मुद्दा सरल है, क्या वे शरणार्थी हैं या अवैध रूप से प्रवेश करने वाले।” पीठ ने रोहिंग्याओं से संबंधित याचिकाओं में विचार के लिए उठे व्यापक मुद्दों पर गौर किया। पीठ ने पूछा, “क्या रोहिंग्या शरणार्थी घोषित किए जाने के हकदार हैं? अगर हां, तो उन्हें कौन-सी सुरक्षा, विशेषाधिकार या अधिकार प्राप्त हैं?”
पीठ ने कहा कि दूसरा मुद्दा यह है कि अगर रोहिंग्या शरणार्थी नहीं हैं और घुसपैठिए हैं, तो क्या उन्हें निर्वासित करने की केंद्र और राज्यों की कार्रवाई उचित थी। पीठ ने पूछा, “अगर रोहिंग्या को घुसपैठिया माना भी गया है, तो क्या उन्हें अनिश्चित काल तक हिरासत में रखा जा सकता है या उन्हें उचित शर्तों के साथ जमानत पर रिहा किया जा सकता है।” अदालत ने कहा कि याचिकाओं में उठाया गया अन्य मुद्दा यह है कि रोहिंग्या को, जिन्हें हिरासत में नहीं लिया गया है और जो शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, क्या उन्हें पेयजल, स्वच्छता और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान की गई हैं।
पीठ ने उल्लेख किया, “अगर रोहिंग्या अवैध रूप से प्रवेश कर रहे हैं, तो क्या भारत सरकार और राज्य सरकारें उन्हें कानून के अनुसार निर्वासित करने के लिए बाध्य हैं?” पीठ ने याचिकाओं को तीन समूहों में विभाजित किया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामलों के तीन समूहों को अलग-अलग निर्धारित किया जाएगा और वह उन पर हर बुधवार को सुनवाई तय करेगा। पीठ ने संकेत दिया कि जो लोग अवैध रूप से दाखिल हुए हैं और उन्हें निर्वासित करने की सरकार की ज़िम्मेदारी के प्रश्न पर, वह केवल सिद्धांत निर्धारित कर सकती है।




