
लखनऊ। उत्तर प्रदेश को भविष्योन्मुख विकास के नए प्रतिमानों के अनुरूप परिवर्तित कर रही योगी सरकार पर्यावरण समावेशी नीतियों को धरातल पर उतारने के लिए ध्यान केंद्रित कर रही है। इसी क्रम में, विकसित उत्तर प्रदेश-2047 के अंतर्गत सोमवार को योजना भवन सभागार में सृजन शक्तिः बैलेंस्ड डेवलपमेंट एंड एनवायरमेंटल स्टीवर्डशिप थीम पर सेक्टोरल वर्कशॉप का आयोजन हुआ।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग तथा उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण (यूपीनेडा) के तत्वावधान में एक दिवसीय वर्कशॉप का शुभारंभ वन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. अरुण कुमार सक्सेना द्वारा किया गया। यह वर्कशॉप हरित ऊर्जा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की भविष्योन्मुख कार्यप्रणाली का चित्रण प्रस्तुत करने का माध्यम बना।
वर्कशॉप में जोर दिया गया कि विकास एवं पर्यावरणीय संरक्षण को सम्मिलित करते हुए संतुलित एवं समग्र विकास सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। साथ ही, हरित विकास को नीति-निर्माण एवं कार्यान्वयन के प्रत्येक स्तर पर पर्याप्त महत्व प्रदान किया जाने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। इस कार्यशाला में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, तकनीकी विशेषज्ञों, शैक्षणिक संस्थानों तथा प्रमुख स्टेकहोल्डर्स ने सतत एवं जलवायु समग्र विकास हेतु दीर्घकालिक रणनीतियों पर व्यापक विचार-विमर्श किया और रोडमैप को लेकर सुझाव प्रस्तुत किए।
यूपी में तेजी से हो रहा स्किल डेवलपमेंट
वन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. अरुण कुमार सक्सेना ने कहा कि यूपी हर लिहाज से अग्रणी राज्य है, चाहे बात जनसंख्या की हो या फिर विकास की, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश वर्ष 2047 तक विकास के नए प्रतिमान स्थापित करेगा। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में स्किल डेवलपमेंट तेजी से बढ़ रहा है। राज्य में सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में आईटीआई, पॉलिटेक्निक, कौशल विकास केंद्र तथा प्राइवेट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खुल रहे हैं। यह रोजगार और विकास को नई दिशा दे रहे हैं।
उन्होंने जोर दिया कि आम नागरिकों को प्रदूषण नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बनाने के लिए जन-जागरूकता कार्यक्रम कराया जाए। उन्होंने समुदाय की भागीदारी तथा विभागों के मध्य सुदृढ़ समन्वय को सुनिश्चित करने पर बल दिया, ताकि सभी विकास परियोजनाएं पर्यावरणीय दृष्टि से उत्तरदायी एवं सामाजिक रूप से समावेशी बन सकें।
सुदृढ़ संस्थागत तंत्र विकसित करने की आवश्यकता
अनिल कुमार, प्रमुख सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन ने नीति सुधारों में तीव्रता लाने एवं सुदृढ़ संस्थागत तंत्र विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि उत्तर प्रदेश जलवायु समावेशी अग्रणी राज्य के रूप में उभर सके। आलोक कुमार, प्रमुख सचिव योजना ने दीर्घकालिक विकास योजनाओं में जलवायु सम्बंधित विचारों को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे विकास सुनिश्चित किया जा सके। बी. प्रभाकर, पीसीसीएफ (मानिटरिंग) ने वनों के संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र पुनःस्थापन तथा जिलास्तरीय जलवायु अनुकूलन उपायों के महत्व को रेखांकित किया। इंदरजीत सिंह, निदेशक, यूपीनेडा ने राज्य में नवाचार आधारित मॉडलों एवं सार्वजनिक-निजी सहभागिता के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा को व्यापक रूप से बढ़ाने की क्षमता पर प्रकाश डाला।
कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने पर जोर
बी. चन्द्रकला, सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन ने नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने एवं कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने, परिपत्र अर्थव्यवस्था एवं संसाधन-कुशलता को बढ़ावा, पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन एवं जैव विविधता संरक्षण सुदृढ़ करने, अवसंरचना को जलवायु समग्र बनाने एवं आपदा-जोखिम न्यूनीकरण मजबूत करने, हरित बांड, मिश्रित वित्त एवं अंतरराष्ट्रीय जलवायु निधियों के माध्यम से जलवायु वित्त जुटाने की आवश्यकता पर जोर दिया। मनीष मित्तल, सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विकास के प्रत्येक क्षेत्र में पर्यावरणीय स्थिरता के एकीकरण की बढ़ती आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यशाला में नीति आयोग की परामर्शदाता डॉ. स्वाति सैनी, नाबार्ड के उप महाप्रबंधक सिद्धार्थ शंकर, आईआईटी कानपुर के कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनिबिलिटी के डीन सच्चिदानंद त्रिपाठी, जीआईजेड के निदेशक हैंस जर्गेन समेत विभिन्न पैनलिस्ट्स ने जैव विविधता संरक्षण, ऊर्जा नियोजन तथा जलवायु समावेशी अवसंरचना विकास के लिए साक्ष्य-आधारित, स्थानीय रूप से उपलब्ध प्रौद्योगिकियों और कार्य करने को लेकर विचार प्रस्तुत किए।




