
उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन (संबद्ध–ऐक्टू) के प्रदेश बंद के आह्वान का राज्यभर में व्यापक असर रहा। हाथरस, अलीगढ़, बदायूं, मुरादाबाद, बरेली, ललितपुर, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, इलाहाबाद, सोनभद्र, गोरखपुर, बस्ती समेत कई जिलों में हड़ताल पूर्ण रूप से सफल रही। जगह-जगह आशा कर्मियों ने बैनर-प्लेकार्ड लेकर प्रदर्शन किया, सभाएं कीं और जुलूस निकालकर अपनी मांगों के समर्थन में आवाज बुलंद की।
राज्य प्रचार सचिव सीमा देवी ने कहा कि दशकों से सरकार आशा कर्मियों की समस्याओं पर मौन है। चार माह की प्रोत्साहन राशि और अन्य पारिश्रमिक बकाया हैं, जबकि 1.5 लाख करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि गायब होने का आरोप है। उन्होंने बताया कि आयुष्मान कार्ड और आभा आईडी के तहत 225.2 करोड़ रुपये की अदायगी भी लंबित है। सीमा देवी ने कहा कि न तो न्यूनतम वेतन, ईपीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी दी जा रही है और न ही जीवन बीमा का लाभ मिला है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार शीघ्र त्रिपक्षीय वार्ता नहीं बुलाती तो आशा कर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने को विवश होंगी।
भाकपा (माले) का विरोध मार्च, कानून-व्यवस्था पर उठाए सवाल
भाकपा (माले) ने शनिवार को परिवर्तन चौक से जिलाधिकारी कार्यालय तक विरोध मार्च निकाला। पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता हाथों में लाल झंडे लेकर नारेबाजी करते हुए सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। जिला प्रभारी रमेश सिंह सेंगर के नेतृत्व में निकले इस मार्च में बड़ी संख्या में आशा वर्कर भी शामिल हुईं।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि प्रदेश में दलितों और पिछड़ों पर लगातार हमले हो रहे हैं, जबकि महिलाओं के खिलाफ हिंसा और गैंगरेप की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। रमेश सिंह सेंगर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कानून का राज पूरी तरह समाप्त हो चुका है।
मुख्यमंत्री बिहार जाकर कानून-व्यवस्था की तारीफ करते हैं, मगर हकीकत इसके विपरीत है। महिलाएं घरों से बाहर निकलने में डर महसूस कर रही हैं, जबकि लूट, हत्या और रेप जैसी घटनाएं आम हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में व्याप्त अराजकता पर तत्काल अंकुश लगाया जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। पार्टी ने इन घटनाओं का विवरण देते हुए ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से राज्यपाल को भेजा और सरकार से प्रभावी कदम उठाने की मांग की।




