RSS 100 Years: राष्ट्र को दृढ़, संगठित और चरित्रवान बनाने का शताब्दी पर्व

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने 1925 में डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में एक संगठन के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी। उनका उद्देश्य था एक ऐसे समाज का निर्माण करना जो न केवल राष्ट्रवादी भावनाओं से ओतप्रोत हो, बल्कि नैतिकता, अनुशासन और संगठन शक्ति से भी सशक्त हो। अब जब संघ अपने 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है, यह केवल एक संगठन का शताब्दी पर्व नहीं है, बल्कि राष्ट्र निर्माण की उस दीर्घकालिक साधना का उत्सव है जिसमें करोड़ों स्वयंसेवकों का त्याग, समर्पण और निष्ठा शामिल है।
आरएसएस ने प्रारंभ से ही राष्ट्र को संगठित करने, समाज को एकजुट करने और प्रत्येक नागरिक में कर्तव्य भावना जाग्रत करने का प्रयास किया है। चाहे स्वतंत्रता संग्राम का समय हो या स्वतंत्र भारत के निर्माण की प्रक्रिया, संघ ने सदैव अपने स्वयंसेवकों को राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानने की प्रेरणा दी। यही कारण है कि आज संघ न केवल भारत में बल्कि विदेशों तक अपनी विचारधारा और कार्यों के माध्यम से समाज को जोड़ने का कार्य कर रहा है।
संघ के 100 वर्ष यह दर्शाते हैं कि कैसे एक छोटा-सा संगठन धीरे-धीरे बढ़कर विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया। संघ का लक्ष्य केवल राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि शिक्षा, सेवा, स्वास्थ्य, सामाजिक उत्थान और सांस्कृतिक संरक्षण के कार्यों में भी उसने अमूल्य योगदान दिया है। आज लाखों स्वयंसेवक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा कार्यों से लेकर आपदा राहत तक में सक्रिय रहते हैं।
आरएसएस का मानना है कि राष्ट्र तभी सशक्त हो सकता है जब उसका समाज संगठित और चरित्रवान हो। इसीलिए संघ ने सदैव ‘संघटन और संस्कार’ दोनों पर बल दिया। शाखाओं के माध्यम से अनुशासन, सेवा और समर्पण की भावना का विकास होता है। इसी आधार पर संघ ने समाज में जाति, धर्म और वर्गभेद से ऊपर उठकर राष्ट्रप्रेम को सबसे बड़ी पहचान बनाने का प्रयास किया है।
शताब्दी पर्व केवल अतीत का स्मरण नहीं है, बल्कि यह भविष्य की दिशा तय करने का अवसर भी है। जब भारत स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा, तब वह विश्व पटल पर एक विकसित, आत्मनिर्भर और वैश्विक नेतृत्व करने वाला राष्ट्र बने, यही संघ की आकांक्षा है। आरएसएस मानता है कि यदि नागरिक कर्तव्यनिष्ठ और संस्कारवान होंगे, तो स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ साकार होगा।
इस शताब्दी पर्व के अवसर पर संघ का संदेश स्पष्ट है—राष्ट्र को दृढ़, संगठित और चरित्रवान बनाने का संकल्प। स्वतंत्रता तभी सार्थक होगी जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए समाज को संगठित रखें और आने वाली पीढ़ियों को एक सशक्त, समृद्ध और संस्कारित भारत सौंपें।