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UP में सियासी दांव खेलने उतरे Swami Prasad Maurya कितना डाल पाएंगे लोकसभा चुनाव में अपना असर…

लोकसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा को अलविदा कह दिया है. उन्होंने मंगलवार को खुद के साथ कथित भेदभाव और सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर पीडीए यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी और साथ ही एमएलसी पद से भी इस्तीफा दे दिया है. स्वामी प्रसाद मौर्य अब अपनी नई पार्टी बनाने जा रहे हैं, जिसका ऐलान उन्होंने खुद किया है. स्वामी प्रसाद मौर्य बुधवार को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अपनी नई पार्टी को पुनर्गठित करने का ऐलान करेंगे. इस नई पार्टी का नाम राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी रखा गया है.

उत्तर प्रदेश की सियासत में स्वामी प्रसाद मौर्य ने 80 के दशक में कदम रखा है. लोकदल से उन्होंने अपना सियासी सफर शुरू किया और जनता दल में रहे, लेकिन सियासी बुलंदी बसपा में रहते हुए मिली. इस दौरान विधायक से लेकर मंत्री और एमएलसी तक बने. बसपा से लेकर बीजेपी तक की सरकार में मंत्री रहे. मायावती के करीबी माने जाते थे. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय महासचिव और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तक रहे.

स्वामी प्रसाद मौर्य भले ही बौद्ध धर्म को सार्वजनिक रूप ग्रहण नहीं किया, लेकिन ‘बुद्धिज्म’ को फॉलो जरूर करते हैं. खुद को स्वामी प्रसाद अंबेडकरवादी और कांशीराम के सिद्धांतों पर चलने वाले नेता बताते हैं. सामाजिक न्याय के लिए दलित-ओबीसी की राजनीति की खुलकर राजनीति करते हैं. सपा को उन्होंने ऐसे समय छोड़ा है और अपनी नई पार्टी बनाने जा रहे हैं, जब लोकसभा चुनाव सिर पर है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में गैर-यादव ओबीसी चेहरा स्वामी प्रसाद माने जाते हैं, खासकर अपने समाज मौर्य, शाक्य, सैनी और कुशवाहा समुदाय के बीच. ऐसे में स्वामी प्रसाद अपनी पार्टी बनाकर कितना सियासी असर डाल पाएंगे?

मौर्य-कुशवाहा-शाक्य समाज का इतिहास

उत्तर प्रदेश में मौर्य समाज को अलग-अलग उपजातियों में बंटा हुआ है, जिसे शाक्य, सैनी, कुशवाहा, मौर्य और कोईरी जाति के नाम से जानते हैं. इस जातीय समुदाय को पिछड़ा वर्ग में रखा गया है. ऐतिहासिक रूप से अपने को भगवान बुद्ध, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और महान सम्राट अशोक से जोड़ने वाला यह समाज पिछड़ों शामिल है. आर्थिक रूप से कृषि पर निर्भर रहने वाला यह समाज अब धीरे-धीरे व्यवसाय और व्यापार में भी अपनी पहुंच और पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है.

मौर्य-शाक्य-सैनी-कुशवाहा वोटों की ताकत

उत्तर प्रदेश में यादव और कुर्मियों के बाद ओबीसी में तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह मौर्य समाज का है. यूपी में करीब 7 फीसदी मौर्य-कुशवाहा की आबादी है, लेकिन करीब 15 जिलों में 15 फीसदी के करीब है. पश्चिमी यूपी के जिलों में सैनी समाज के रूप में पहचान है तो बृज से लेकर कानपुर देहात तक शाक्य समाज के रूप में जाने जाते हैं. बुंदेलखंड और पूर्वांचल में कुशवाहा समाज के नाम से जानी जाती है तो अवध और रुहेलखंड व पूर्वांचल के कुछ जिलों में मौर्य नाम से जानी जाती है.

पूर्वांचल के गोरखपुर, वाराणसी, कुशीनगर, देवरिया, वाराणसी, मिर्जापुर, प्रयागराज, अयोध्या में मौर्य बिरादरी निर्णायक भूमिका में है. बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर और चित्रकूट में कुशवाहा समाज काफी अहम है. एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, बदायूं, कन्नौज, कानपुर देहात और आगरा में शाक्य वोटर निर्णायक हैं. पश्चिम यूपी के मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मुरादाबाद में सैनी समाज निर्णायक है. वहीं, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़ जिलों में मौर्य बिरादरी की बड़ी तादाद है.

मौर्य-शाक्य-सैनी-कुशवाहा का वोटिंग पैटर्न

ओबीसी के तहत आने वाला मौर्य-कुशवाहा-शाक्य-सैनी समाज का वोट किसी एक पार्टी का वोट बैंक उत्तर प्रदेश में कभी नहीं रहा. यह समाज चुनाव दर-दर चुनाव अपनी निष्ठा को बदलता रहा है. आजादी के बाद कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा तो लोकदल और जनता दल के भी साथ गया. इसके बाद सपा और बसपा के बीच अलग-अलग क्षेत्रों में बंटता रहा और 2017 में बीजेपी को 90 फीसदी मौर्य समाज का वोट मिला था, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने से मौर्य वोट का कुछ हिस्सा सपा को भी मिला है.

यूपी में 12 विधायक-दो सांसद हैं

उत्तर प्रदेश में मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी समाज के 12 विधायक चुन कर 2022 में आए हैं. बीजेपी के टिकट पर 11 विधायक चुनकर आए, जबकि एक विधायक सपा के टिकट पर जीते हैं. 2017 में 15 विधायक मौर्य-कुशवाहा-सैनी समाज थे और इतने ही विधायक 2012 में भी थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में इस मौर्य समाज के दो सांसद चुने गए थे और दोनों ही बीजेपी से जीते हैं. बदायूं से डॉ. संघमित्रा मौर्य और सलेमपुर से रवीन्द्र कुशवाहा. इसके अलावा एक राज्यसभा सदस्य बीजेपी बनने जा रहे हैं, वो अमरपाल मौर्य, जिनका जीतना तय है.

यूपी में 1996 में मौर्य समाज के सबसे ज्यादा चार सांसद चुने गए थे और इसके अलावा दो-तीन सांसद मौर्य समाज से जीतकर हर लोकसभा चुनाव में आते रहे हैं. आजादी के बाद तीन लोकसभा चुनाव तक इस समाज का कोई भी सांसद नहीं बना था. 1971 के लोकसभा चुनाव के बाद से हर बार मौर्य समाज के लोग चुनाव जीतते और संसद पहुंचते रहे हैं.

यूपी की कितनी लोकसभा सीट पर असर

उत्तर प्रदेश की एक दर्जन लोकसभा सीट पर मौर्य समुदाय का वोट दो लाख से साढ़े तीन लाख है. सलेमपुर, देवरिया, बदायूं, आंवला, एटा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, मिर्जापुर, संभल, इटावा, चंदौली, झांसी और सहारनपुर लोकसभा सीट पर खुद जीतने या फिर किसी दूसरे समुदाय को जिताने की ताकत रखते हैं. इन्हीं लोकसभा सीटों से मौर्य-शाक्य-सैनी-कुशवाहा समुदाय के लोग प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य कितना डाल पाएंगे असर

बसपा प्रमुख मायावती ने कभी स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए मौर्य-कुशवाहा समाज के लोगों को आकर्षित करने का काम किया था, जिसके चलते उन्हें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से लेकर राष्ट्रीय महासचिव तक बनाया. इतना ही नहीं 1996 के बाद से स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार यूपी की सियासत में बड़े ओहदे पर रहे हैं, जिसके जरिए उन्होंने अपने समाज के बीच अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब रहे. मौर्य समाज की पकड़ का नतीजा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य रहने वाले तो प्रतापगढ़ से हैं, लेकिन चुनाव वो कभी रायबरेली से जीते तो अब पूर्वांचल के कुशीनगर को कर्मभूमि बना रखा है.

स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी बेटी को रुहेलखंड के बदायूं से सांसद बनाया और उनके कई करीबी मौर्य समाज के नेता यूपी के अलग-अलग क्षेत्रों में विधायक रहे हैं. बसपा में रहते हुए स्वामी प्रसाद ने अपने करीबी नेताओं को खूब ओबलाइज किया है और उसी का नतीजा था कि जब बीजेपी में गए तो उनके साथ कई नेता शामिल हुए. इसी तरह 2022 के चुनाव से पहले स्वामी ने सपा में शामिल हुए तो बीजेपी के कई नेता और विधायक भी एंट्री ली. अब अपनी-अलग नई राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं, जिसका नाम राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी रखा है. इससे ही साफ है कि स्वामी प्रसाद मौर्य दलित-पिछड़ों की सियासत करेंगे.

उत्तर प्रदेश में कुशवाहा-मौर्य-शाक्य और सैनी समुदाय लखनऊ तथा इसके आसपास पूर्वांचल तक प्रभावी स्थिति में हैं. बुंदेलखंड में कुशवाहा समाज का बाहुल्य है तो आलू बेल्ट वाले इलाके के एटा, बदायूं, मैनपुरी, इटावा तथा इसके आसपास जनपदों में शाक्य समाज काफी प्रभावी है. सहारनपुर तथा इसके आसपास के जिलों में सैनी समाज की प्रभावी स्थिति है. स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी पार्टी बनाकर सियासी मैदान में उतरने जा रहे हैं, इन्हीं इलाकों में ज्यादा प्रभावी नजर आएंगे. यादव बेल्ट माने जाने वाले इटावा और मैनपुरी इलाके में स्वामी प्रसाद मौर्य सपा के लिए एक बड़ा चैलेंज बन सकते हैं?

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