महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण का अमलीजामा पहना दिया है. विधानसभा के विशेष सत्र में नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण देने वाले विधेयक को सर्वसम्मति से पास कर दिया है. इस तरह महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की दशकों पुरानी मांग पूरी हो गई है. पिछले दस साल में तीसरी बार मराठा आरक्षण का रास्ता तलाशा गया है, लेकिन हर बार आरक्षण घटता गया. 2014 में कांग्रेस-एनसीपी सरकार में मिला 16 फीसदी आरक्षण अब घटकर 10 फीसदी पर आ गया है. कांग्रेस और बीजेपी सरकार में दिए मराठा आरक्षण अदालत में टिक नहीं पाए, जिसके चलते अब सभी के मन में है कि शिंदे सरकार में मिला आरक्षण कानूनी और न्यायिक पेंच में तो नहीं उलझ जाएगा?
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुनील बी शुक्रे के नेतृत्व वाली राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर महाराष्ट्र की शिंदे सरकार ने मराठों को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया. महाराष्ट्र विधानमंडल में शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक मंगलवार को सर्वसम्मति से पारित हो गया.इस विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. राज्यपाल की मंजूरी के साथ ही राज्य में मराठा आरक्षण लागू हो जाएगा. हालांकि, मराठों को आरक्षण देने वाली दो कोशिशें विफल रही हैं, जिसके चलते इस बार भी लोगों को शंका बनी हुई है.
महाराष्ट्र में तीन बार मराठा समुदाय को आरक्षण दिया गया, लेकिन यह अलग बात है कि दो अदालत में नहीं टिक पाया. 2014 में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार ने 16 फीसदी देने का कदम उठाया. साल 2018 में बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन सरकार ने मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण दिया, जिसे बांबे हाईकोर्ट नौकरी में 12 फीसदी और शिक्षा में 13 फीसदी आरक्षण फिक्स कर दिया. शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण देने का कदम उठाया है. इस तरह 10 सालों में मराठा समुदाय का आरक्षण 6 फीसदी घट गया.
बता दें कि मराठा आरक्षण की लड़ाई लगभग कई दशक पुरानी है. मराठा समुदाय अपने आरक्षण के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं और सियासी मजबूरी में तीन बार राज्य में आरक्षण देने का कदम उठाया गया. सबसे पहले 2014 में कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठों को आरक्षण देने का फैसला किया था. 2014 के विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश को देखते हुए पृथ्वीराज चव्हाण मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण देने के लिए अध्यादेश लेकर आए थे, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट में खारिज कर दिया था. इसके चलते मराठा समुदाय आरक्षण से वंचित रह गया था.
मराठा समुदाय को आरक्षण देने का कदम साल 2018 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार ने उठाया. फडणवीस सरकार ने मराठों के लिए 16 फीसदी आरक्षण देने के लिए विधेयक लेकर आए और विधानमंडल के दोनों ही सदनों से उसे पारित भी कराया. इसके बाद मराठा आरक्षण को लेकर कोर्ट में चुनौती दे दी गई, जिसके बाद हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण को 16 फीसदी से घटाकर सरकारी नौकरी में 12 फीसदी और शिक्षा में 13 फीसदी आरक्षण फिक्स कर दिया. कोर्ट के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने तमाम सुनवाई करने के बाद 2021 में मराठा आरक्षण रद्द कर दिया दिया.
सुप्रीम कोर्ट से रद्द किए जाने के बाद मराठा समुदाय लगातार अपने आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहा है. ऐसे में एकनाथ शिंदे की सरकार ने हाल ही में सेवानिवृत्त जस्टिस सुनील शुक्रे की अध्यक्षता में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया. शुक्रे आयोग की रिपोर्ट में मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना. इसके आधार पर मंगलवार को फिर से मराठा समुदाय को सरकारी नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने संबंधी विधेयक पारित किया गया. इस बार मराठा आरक्षण का कोटा 16 फीसदी से घटकर 10 फीसदी रह गया है.
महाराष्ट्र में मराठों को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने के बाद अब आरक्षण की सीमा बढ़कर 62 फीसदी हो जाएगी, क्योंकि राज्य में फिलहाल 52 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. आरक्षण सीमा 50 फीसदी पार करने की वजह से इस विधेयक को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. इसकी आशंका जताते हुए मराठा आंदोलनकारी मनोज जरांगे ने कहा कि इसमें मराठाओं की मांग को पूरा नहीं किया गया है. आरक्षण की सीमा 50 फीसदी के ऊपर हो जाएगी तो सुप्रीम कोर्ट इसे रद्द कर देगा. हमें ऐसा आरक्षण चाहिए जो ओबीसी कोटे के तहत हो.
मनोज जरांगे की मांग है कि मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने के बजाय ओबीसी कोटे के तहत दिया जाए. इसके लिए कुनबी जाति का मराठों का जातीय प्रमाण पत्र बनाने की मांग कर रहे हैं. कुनबी जाति ओबीसी में आती है और मराठा समुदाय अपने आपको कुनबी जाति की उपजाति बताते हैं. इसके तहत उन्हें अगर आरक्षण दिए जाने से राज्य ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर आरक्षण का लाभ मिल सकता है और अदालती पेंच में भी नहीं फंसेगा.
मराठा आरक्षण का इतिहास
मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं. इसी के आधार पर वे सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. कुनबी कृषि से जुड़ा एक समुदाय है. महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में रखा गया है. कुनबी समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लाभ का मिलता है. मराठा आरक्षण की नींव 26 जुलाई 1902 को पड़ी. छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी कर कहा कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50 फीसदी आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए.
मुंबई स्टेट के 23 अप्रैल 1942 के एक प्रस्ताव में मराठा समुदाय को मध्यम और पिछड़े वर्गों में से एक के रूप में उल्लेखित किया गया था. साल 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था. आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया. उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी. 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों को लेकर पहला मार्च निकाला था.
मंडल कमीशन के बाद कुनबी जाति को ओबीसी में शामिल कर आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन मराठा समुदाय उसमें शामिल नहीं किया गया. इसके चलते मराठ समाज अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं. साल 2017 में राज्य की बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एम जी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को आंकड़े संग्रह करने के लिए कहा और बाद में मराठों को आरक्षण प्रदान करने के लिए एक कानून बनाया. इसे बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, लेकिन कानून उच्च न्यायालय की पड़ताल से पास हो गया, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया था. इस तर्ज पर शिंदे सरकार ने भी आरक्षण देने के लिए रास्ता निकाला और उसे कानूनी अमलीजामा पहनाने का काम किया लेकिन आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट चुनौती बन सकती है.
कानूनी चुनौती का भय
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने के बाद 72 फीसदी हो गया है, जिसमें 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण है. इससे पहले 52 फीसदी आरक्षण में अनुसूचित जाति 13 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 7 फीसदी, ओबीसी 19 फीसदी, विशेष पिछड़ा वर्ग 2 फीसदी, विमुक्त जाति 3 प्रतिशत, घुमंतू जनजाति (बी) 2.5 फीसदी, घुमंतू जनजाति (सी) धनगर 3.5 फीसदी और घुमंतू जनजाति (डी) वंजारी 2 फीसदी दिया जा रहा है. मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण दिये जाने के बाद राज्य में आरक्षण बढ़कर 62 फीसदी पहुंच गया.
कई राज्यों ने लांघी है आरक्षण सीमा
महाराष्ट्र विधानसभा के सदन में विधेयक पेश करने के बाद मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि देश के 22 राज्य 50 फीसदी आरक्षण का आंकड़ा पार कर चुके हैं. तमिलनाडु राज्य में 69 फीसदी, हरियाणा में 67 प्रतिशत, राजस्थान में 64 फीसदी, बिहार में 69 फीसदी, गुजरात में 59 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 55 फीसदी आरक्षण है. मैं अन्य राज्यों का भी उल्लेख कर सकता हूं. उन्होंने कहा कि हम राज्य में ओबीसी के मौजूदा कोटा को छुए बिना मराठा समुदाय को आरक्षण देना चाहते हैं. मराठा आरक्षण लाभ पाने के लिए पिछले 40 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं.