उत्तर प्रदेश

बारिश के बीच नम आंखों से इमाम हुसैन को किया याद

लखनऊ। सोमवार को चौक स्थित इमाम बाड़ा नाजिम साहब से चुप ताजिया का जुलूस निकाला गया। ये जुलूस मोहर्रम के आखिरी दिन निकलने वाला अंतिम जुलूस होता है। दो महीने 8 दिन तक चलने वाले मोहर्रम और गम के सिलसिले का चुप ताजिया के साथ समापन हुआ। ईराक स्थित कर्बला में यजीदी फौज द्वारा बेरहमी से शहीद किए गए पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की याद में मोहर्रम मनाया जाता है।

जुलूस शुरू होने से पहले शिया धर्म गुरु मौलाना एजाज अतहर ने मजलिस पढ़ी। उसके बाद परंपरागत तरीके से निकाला गया जुलूस अकबरीगेट, नक्खास, बिल्लौचपुरा चैराहे से मुड़कर गिरधारी सिंह इंटर कॉलेज मंसूर नगर होता हुआ सआदतगंज स्थित रौजा-ए-काजमैन में संपन्न हो गया। लगभग 3 किलोमीटर पैदल यात्रा अकीदतमंदों ने तय किया। जुलूस और मजलिस में बड़ी संख्या में अकीदत मंद शामिल हुए और नम आंखों से हजरत इमाम हुसैन को याद किया। मौलाना एजाज अतहर ने जंग की तारीख बयान किया।

उन्होंने कहा कि इराक के कर्बला जैसी जंग दुनिया में दोबारा कभी नहीं हुई। यह ऐसी जंग थी, जिसमें महिलाएं, बीमार और 6 महीने के मासूम बच्चे भी शामिल हुए। पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे ने इस जंग को इंसानियत कि खातिर लड़ी थी। जिसके साथ कर्बला से ये संदेश दिया कि अत्याचार करने वाला कितना भी शक्तिशाली शाली हो उसके खिलाफ आवाज जरूर उठाना चाहिए । 2 महीना 8 दिन तक हमने लगातार जुलूस और मजलिस के माध्यम से हजरत इमाम हुसैन को याद किया। आज मोहर्रम के गम का आखिरी दिन है।

मोहर्रम में निकलने वाले सभी जुलूस खास होते हैं। इमामबाड़ा से निकाले गए अलविदाई चुप जुलूस मे भारी संख्या मे अकीदतमंद, अजादार शामिल हुए। मरसिया पढ़कर अकीदतमंदों ने इमाम हुसैन और उनके साथियों याद किया, पुरसा पेश किया । जुलूस में शामिल ताजिया को अकीदत के साथ लोग चूमते हुए नजर आए।

जुलूस में शामिल अकीदतमंद तबरेज ने कहा कि आज हम लोग नम आंखों के साथ मोहर्रम को विदा कर रहे हैं। 2 महीना 8 दिन शिया समुदाय के लिए बहुत विशेष होता है। मोहर्रम का साल भर इंतजार रहता है। इन दिनों में हम ज्यादातर काले कपड़े पहनते हैं। किसी प्रकार की खुशी नहीं मनाई जाती है। हमारी ये कोशिश होती है कर्बला के मैदान से इमाम हुसैन ने जो संदेश दिया उसे अपने जीवन में लागू करें। इमाम हुसैन और उनके साथियों को 3 दिनों तक भूखा-प्यासा रखा गया था। इसलिए मोहर्रम के दौरान बड़ी संख्या में भंडारा बांटा जाता है। सबील (प्याऊ) लगाई जाती है।

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