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बहुत दिलचस्प होगाः बिहार का चुनाव

कभी भी जारी हो सकती अधिसूचना, नवम्बर में चुनाव तय तीन चरणो में होगा मतदान

शिव शंकर गोस्वामी
वरिष्ठ पत्रकार


बिहार विधानसभा का चुनाव अगले महीने तय है। तारीख अभी घोषित नहीं हुई किंतु भारत निर्वाचन आयोग किसी भी समय इसकी घोषणा कर सकता है। 243 सीटों के लिए बिहार में तीन चरणों में मतदान होने की संभावना है। चुनाव के पश्चात किसकी सरकार बनेगी यह तो समय बताएगा किंतु सभी पार्टियों ने कमर कस ली है जिसमें भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी नीतीश कुमार के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव और कांग्रेस के गठबंधन रजग में टक्कर की संभावना व्यक्त की जा रही है। इस चुनाव में जिस भी एक पार्टी को या एक गठबंधन को 122 सीट मिलेगी वही अगली सरकार बना पाएगा चुनाव में परिवारवाद और विकासवाद का मुद्दा अभी से उभर रहा है।

दूसरी ओर भ्रष्टाचार और जमीन चोरी के मामले भी कायदे से उठाए जा रहे हैं अगर इन मुद्दों को रजग ने कायदे से उठा लिया तो एक बार बिहार में फिर से नीतीश कुमार की सरकार बन सकती है। भारतीय जनता पार्टी ने पहले ही घोषणा कर दिया है कि अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत हुई तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे और जो उनके सहयोगी दल है उनको भी सम्मानजनक स्थान दिया जाएगा । दूसरी ओर परिवारवादी पार्टी चलाने वाले लालू प्रसाद यादव, जो चरक घोटाले में सजा काट रहे हैं और इस समय इस समय पैरोल पर जेल से बाहर है के सुपुत्र तेजस्वी यादव का दावा है कि सरकार वहीं बनाएंगे ऐसे में देखना यह है कि बिहार की जनता को कैसी सरकार मिलती है।

बिहार में भाजपा और नीतीश कुमार के साथ जो दूसरे सहयोगी दल है उसमें लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा और हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा के जीतन राम मांझी भाजपा और जदयू के सहयोगी दल हैं भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि वह इस बार अपने सहयोगी दलों को सम्मानजनक सीट देगी। इसके विपरीत परिवारवादी लालू यादव की पार्टी चुनाव में दम खम के साथ उतरना चाहती है लेकिन उनके साथ आरोपों का ऐसा पिटारा है जिससे वह मुक्ति नहीं पा सकते हैं।

तेजस्वी यादव पर आरोप है कि उन्होंने जमीन के बदले नौकरी देने का बहुत बड़ा घोटाला किया है जिसकी जांच चल रही है और उसमें कभी भी चार्जशीट आ सकती है। इसके अलावा उनकी दो बहने और तेजस्वी की माता रावड़ी देवी यह सब मिलकर के केवल एक परिवारवाद प्राइवेट लिमिटेड पार्टी हैं । इसके विपरीत नीतीश कुमार के पक्ष में एक बात यह जाती है कि 15 सालों से वह सरकार चला रहे हैं और सरकार बेदाग़ है। उनके ऊपर कभी किसी घोटाले का आरोप नहीं लगा इसलिए जनता चाहती है कि लुटेरे और बेईमान पार्टियों के बजाय नीतीश कुमार को एक बार और मौका दिया जाना चाहिए और भारतीय जनता पार्टी बड़े दमखम के साथ नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए की जी जान से जुटी हुई है।

यह बात अलग है कि नीतीश कुमार की छवि बीच में बहुत खराब हो गई थी और लोग उन्हें पालटू चाचा के नाम से जानने लगे थे लेकिन शासन प्रशासन में जो दमखम दिखाया और उन्होंने बिहार में सड़कों का विकास किया और अपराधों पर नियंत्रण करने का काम किया माफियाओं का सफाया किया उससे उनकी छवि अच्छी बनी हुई है। इसलिए जनता एक बार उन्हें अगर मौका दे दे तो कोई ताजुब की बात नहीं है। बिहार में एक नई पार्टी उभरी है प्रशांत किशोर की जान स्वराज नामक पार्टी प्रशांत किशोर अभी तक कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी तथा पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी आदि नेताओं के लिए काम करते थे लेकिन इस बार पांचवें सवार की तरह वह भी बिहार में जोर आजमाइश कर रहे हैं। अब उनको कितनी सीटें मिलती हैं यह तो समय बताएगा लेकिन वह वोट काटने का काम तो करेंगे ही करेंगे।

जहां तक चिराग पासवान की बात है तो इस समय केंद्र में मंत्री हैं और उनके पास महत्वपूर्ण खाद् प्रसंस्करण एवं रसद विभाग तथा 6 सांसदों की ताकत है। वह लोकसभा में पहुंचे हैं लेकिन उनकी भी इच्छा एक बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने की है। इसलिए वह रायता फैलाए हुए हैं अब देखना यह है कि उनको इसमें कितनी सफलता मिलती है । कहीं ऐसा तो नहीं की आधी छोड़ पूरी को धावे, ना आदि रहे पूरी पावे। इस समय बिहार पे , पूरे देश की निगाहें लगी हुई है। कांग्रेस भी बिहार में अपनी किस्मत जरूर आजमाना चाहेगी लेकिन उसकी सहयोगी पार्टी के नेता तेजस्वी यादव ही उनको ज्यादा सीट देना नहीं चाहते। वैसे पिछली बार कांग्रेस को बिहार में केवल 17 सीट मिली थी। इस हिसाब से अगर कांग्रेस को देखा जाए तो बहुत ज्यादा , सीट मिल नहीं सकती दूसरी बात यह है कि बिहार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जो यात्रा निकली थी उसका कोई बहुत खास असर पड़ा नहीं है वह एक तरह से टाई – टाई फीश हो गई है।

दूसरी ओर उनके मित्र तेजस्वी यादव ने भी एक यात्रा निकाली थी असल में दोनों में बहुत मनमुटाव हो गया है कारण यह कि तेजस्वी यादव ने एक मंच से राहुल गांधी को देश का भावी प्रधानमंत्री तो घोषित कर दिया लेकिन जब राहुल गांधी की बारी आई तो उन्होंने तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया यह बात तेजस्वी यादव को बहुत खल रही है। तेजस्वी यादव की एक समस्या और है कि उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने घर से बगावत कर दी है और उनके पिता लालू यादव ने उनको पार्टी से निकल भी दिया है। वह अलग से चुनाव लड़ना चाहते हैं अगर ऐसा हुआ तो वह अपने भाई की पार्टी को ही नुकसान पहुंचाएंगे दूसरी ओर तेजस्वी यादव अपनी बहन रोहिणी आचार्य को पहले से ही राजनीति में लाना चाहते हैं कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी की भांति बिहार में भी परिवार बाद का ही बोलबाला है।

यह आरोप नीतीश कुमार पर कभी नहीं लगा किसी ने नहीं लगाया लेकिन लालू यादव , तेजस्वी यादव, रोहिणी यादव ,तेज प्रताप यादव सब एक ही परिवार के लोग हैं इसलिए उन पर परिवारवाद का ठप्पा तो लगता ही है दूसरी ओर नीतीश कुमार का एक बेटा है वह भी राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं है उसका केवल सारा जोर इस बात पर है कि उसके पिता फिर से बिहार की बागडोर संभाले और भारतीय जनता पार्टी भी यही चाहती है कि नीतीश कुमार को बिहार की बागडोर सौंपी जाए। बताने की आवश्यकता नहीं है कि बिहार में वोटों की राजनीति जातिगत गणित पर ही निर्भर करती है। यादव, मुसलमान और कुर्मी जातियां वहां चुनाव पर हावी हैं नीतीश कुमार की कुर्मी लोगों के बीच में बहुत गहरी पैट है।

भारतीय जनता पार्टी को अगड़ी जातियों का समर्थन है लेकिन उनकी संख्या इतनी नहीं है कि अपने बलबूते पर वह किसी की सरकार बना सकें ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की भी मजबूरी है कि वह नीतीश कुमार को साथ लेकर चले और छोटे-छोटे दलों को भी अपने साथ जोड़ रखें जैसा कि इस समय सरकार चल रही है। छोटे-छोटे दलों के वजह से अगर ऐसा हुआ तो नीतीश और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन बिहार में एक बार फिर से परचम लहराने की दिशा में कदम बढ़ा सकती है। भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार बिहार चुनाव को लेकर इतने ज्यादा सक्रिय हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार बिहार की यात्रा की है और वहां पर करोड़ों रुपए की परियोजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास किया है अभी हाल ही में सीतामढ़ी में उन्होंने सीता जी के जन्म स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाने के के लिए शिलान्यास किया है।

जिसको लेकर के मिथिलांचल में लोगों का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की ओर हुआ है। इसके अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी लगातार बिहार का दौरा कर रहे हैं कुछ और बड़े नेता जैसे जेपी नड्डा और बिहार के ही रहने वाले रवि शंकर प्रसाद पहले से ही बिहार में लगे हुए हैं। दूसरी ओर कांग्रेस का साथ ममता बनर्जी भी छोड़ चुकी है क्योंकि जो व्यवहार राहुल गांधी दूसरे दल के नेताओं के साथ करते हैं वह किसी को रास नहीं आता है। अब नीतीश कुमार के मुकाबले में तेजस्वी यादव अगर मैदान में है तो उन्हें उम्मीद थी कि राहुल गांधी उनका जी जान से साथ देंगे लेकिन राहुल गांधी ने जब मंच से इस बात की घोषणा नहीं की कि तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो उनकी मनसा पर अभी से सवाल उठाए जा रहे हैं। वैसे देखा जाए तो कांग्रेस का बिहार में कोई बहुत बड़ा प्रभाव नहीं है 1977 से लगातार 50 साल हो गए कांग्रेस वहां सत्ता में नहीं लौटी है और ना आगे लौटने की उम्मीद की जा सकती है।

असली लड़ाई जो है वह राजग और राजाद

के बीच में ही है अब देखना है कि , तेजस्वी यादव का पलड़ा भारी होता है या नीतीश कुमार का। तेजस्वी यादव मंच से सावन के महीने में मछली खाकर के लोगों को चिढ़ाने का काम करते हैं तो नीतीश कुमार घर-घर जाकर के लोगों से मिलते हैं उनका दुख दर्द सुनते हैं और उनकी भावनाओं का आदर करते हैं अभी बिहार में भयंकर बाढ़ आई हुई थी जिसमें नीतीश कुमार ने कई जगहों पर जाकर के लोगों की मदद करने में कोताही नहीं की जबकि कांग्रेस का कोई व्यक्ति वहां दिखाई तक नहीं पड़ा और तेजस्वी यादव भी केवल अपना और अपने परिवार का हित साधने में लग रहे । कुल मिलाकर देखा जाए तो बिहार का चुनाव बहुत दिलचस्प होने जा रहा है और यहाँ जो भी , परिणाम निकलेगा इसका असर अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव पर और फिर उसके बाद लोकसभा के चुनाव पर जरुर पड़ेगा। अब देखना यह है कौन इसमें कितना दमखम के साथ मैदान में उतरता है। अगर भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव को जीत ले गई तो एक बार फिर से मोदी का कद ऊंचा हो जाएगा और लोगों को यह कहते हुए कोई संकोच नहीं होगा कि मोदी है तो मुमकिन है

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