चंडीगढ़ नगर निगम को नया मेयर मिल गया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को विजेता घोषित किया. वहीं रिटर्निंग ऑफिसर अनिल मसीह को चुनाव खराब करने का जिम्मेदार माना. सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने वे बैलेट पेपर भी देखे जिन्हें अनिल मसीह ने अमान्य घोषित किया था. कोर्ट ने कहा कि अनिल मसीह ने जो किया है वो लोकतांत्रिक नियमों के खिलाफ है. अमान्य वोटों को जोड़ा जाए तो आप उम्मीदवार के पास 20 वोट होते हैं, ऐसे में कुलदीप कुमार ही विजेता हैं.
चंडीगढ़ मेयर चुनाव में नामांकन से लेकर नतीजों तक घमासान मचा रहा. भाजपा उम्मीदवार की जीत के ऐलान के बाद तो ये और बढ़ गया. आप उम्मीदवार कुलदीप कुमार ने जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और मामले की सुनवाई शुरू हुई तो इसकी परत दर परत खुलती चली गईं. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने वो आठ बैलेट पेपर भी देखे जिन्हें अनिल मसीह ने अमान्य घोषित किया था. पीठ ने रिटर्निंग ऑफिसर अनिल मसीह को स्पष्ट तौर पर दोषी माना. कोर्ट ने कहा कि मसीह ने चुनाव भी खराब किया और अदालत के सामने भी झूठ बोला, ऐसे में उनके खिलाफ कोर्ट को गलत जानकारी देने का नोटिस भी जारी किया गया.
नतीजों पर क्यों मचा था बवाल
चंडीगढ़ मेयर के 30 जनवरी को चुनाव हुए थे, इसमें भाजपा उम्मीदवार मनोज सोनकर को विजेता घोषित किया गया था. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार कुलदीप कुमार ने नतीजों पर सवाल उठाया था. दरअसल चंडीगढ़ नगर निगम में 35 वोट हैं, चुनाव के बाद रिटर्निंग आफिसर अनिल मसीह ने बताया कि चुनाव में भाजपा को 16 और आम आदमी पार्टी गठबंधन को 12 वोट ही मिले हैं. अनिल मसीह ने 8 वोटों को अमान्य घोषित कर दिया था. ये सभी वोट गठबंधन के थे.
ऐसे बढ़ा बवाल
भाजपा को पक्ष में जो वोट पड़े थे वह 14 भाजपा पार्षदों के, एक शिरोमणि अकाली दल का एक और एक वोट सांसद का था. वहीं आम आदमी पार्टी के 13 और कांग्रेस के सात वोट थे, लेकिन इनमें 8 अमान्य किए गए थे. बस यहीं से बवाल बढ़ गया. चुनाव प्रक्रिया से जुड़ा वीडियो सामने आया तो उसमें दिखा कि पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह मतपत्रों पर कुछ लिख रहे हैं. इसके बाद अनिल मसीह पर आरोप लगा कि मतपत्रों पर निशान उन्होंने खुद बनाए हैं. ऐसे में आप उम्मीदवार कुलदीप कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
कौन हैं अनिल मसीह जो बन गए विलेन
अनिल मसीह चंडीगढ़ नगर निगम के मनोनीत पार्षद हैं जिन्हें 2022 में प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित के रिकमेंडेशन पर मनोनीत किया गया था. तब से वह निगम की सभी बैठकों में हिस्सेदारी करते हैं. भाजपा में अनिल मसीह 2011 में जुड़े थे. इसके बाद पार्टी में सक्रिय हुए और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद के करीबी रहे. इसके बाद अनिल मसीह को भाजपा माइनॉरिटी मोर्चा में महामंत्री बनाया गया. जब मेयर के चुनाव के लिए चंडीगढ़ के डीसी विनय प्रताप सिंह ने 18 जनवरी को धारा 38 के संदर्भ में पार्षदों की एक बैठक बुलाई और चुनाव के लिए अनिल मसीह को पीठासीन अधिकारी के तौर पर नामित किया गया. इस बैठक का एजेंडा मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव कराना था.
पहले हाईकोर्ट पहुंचा मामला
हाईकोर्ट में अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें उपायुक्त को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी कि निगम के महापौर, वरिष्ठ उप महापौर, उप महापौर के पद पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और नियुक्ति हों. चुनाव प्रक्रिया की निगरानी के लिए न्यायालय के तत्वावधान में एक आयुक्त की नियुक्ति की जाए. इस पर हाईकोर्ट ने पूरी मतदान प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग करने का आदेश दिया था और यह कहा था कि चंडीगढ़ पुलिस स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करेगी. चुनाव हुआ और अनिल मसीह बैलेट पेपर पर कुछ करते नजर आए. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.
सुप्रीम कोर्ट ने बताया था लोकतंत्र की हत्या
सुप्रीम कोर्ट में मामले की पहली सुनवाई 5 फरवरी को हुई थी, इसमें कोर्ट ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में की गई हरकत को लोकतंत्र की हत्या करार दिया था. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि रिटर्निंग अधिकारी पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में तीन सदस्यीय पीठ ने 7 फरवरी को होने वाली बैठक को निरस्त कर दिया था.
बैलेट पेपर पर क्या लिख रहे थे?
19 फरवरी को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अनिल मसीह को कड़ी फटकार लगाई थी. सीजेआई ने अमान्य किए गए बैलेट पेपर मंगाए थे और वीडियो भी मांगा था. मसीह से ये भी पूछा गया था कि आप बैलट पेपर पर क्रॉस क्यों लगा रहे थे. मसीह ने जवाब दिया कि मैं लिख नहीं रहा था, इस पर सीजेआई ने कहा था कि बिल्कुल साफ है कि आप बैलेट में एक्स मार्क कर रहे थे.
लोकतंत्र की प्रक्रिया को छल से नाकाम नहीं किया जा सकता
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतंत्र की प्रक्रिया को छल से नाकाम नहीं किया जा सकता. अनुच्छेद 142 के मुताबिक कोर्ट कर्तव्य से बंधी है, जिसमें पूरा न्याय करने की बात कही गई है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को 12 वोट मिले, आठ बोटों को अवैध बताया गया. ऐसा गलत तरीके से किया गया. जो वोट अमान्य किए गए, वे सभी याचिकाकर्ता के पक्ष में डाले गए. चुनाव प्रक्रिया में कमजोरी उस चरण में मिली, जब पीठासीन अधिकारी ने वोटों की गिनती की. यदि पूरी चुनाव प्रक्रिया को रद्द किया गया तो ये लोकतांत्रिक सिद्धांतों की क्षति में इजाफा होगा. इसके बाद कोर्ट ने अमान्य वोटों को वैध मानकर आप उम्मीदवार कुलदीप सिंह को विजेता घोषित कर दिया.